स्तुति

 


           


* भगवान् विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ को मारने के लिए कमल जन्मा ब्रह्मा जी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मैं सेवन करता हूँ। वे अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शंख धारण करती हैंउनके तीन नेत्र हैं। वे समस्त अंगो में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान हैतथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं।


* ब्रह्मा जी ने कहा :- देवि ! तुम्हीं स्वाहा, तुम्हीं स्वधा और तुम्हीं वषट्कार हो। स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं। तुम्ही जीवन दायिनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार, मकार- इन तीन मात्राओं के रूप में तुम्हीं स्थित हो तथा इन तीन मात्राओं के अतिरिक्त जो विन्दुरूपा नित्य अर्धमात्रा है, जिसका विशेष रूप से उच्चारण नही किया जा सकता, वह भी तुम्हीं हो। देवि ! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। देवि ! तुम्हीं इस विश्व- ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत् की सृष्टि होती हैंतुम्हीं से इसका पालन होता हैं। और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। जगन्मयी देवी ! इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालन काल में स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहार रूप धारण करने वाली होतुम्ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम्हीं तीन गुणो को उत्पत्र करने वाली सबकी प्रकृति हो। भंयकर कालरात्रि, महारात्रि, और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्री, तुम्ही ईश्वरी, तुम्ही ही और तुम्ही बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्ही हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शंख और धनुष धारण करने वाली हो। बाण, भुशुण्डी और परिघ - ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं। तुम सौभ्य और सौम्यतर हो- इतना ही नही, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, में उन सब की अपेक्षा तुम अत्याधिक सुन्दर हो। पर और अपर - सबसे परे रहने वाली परमेश्वरी तुम्ही हो। सर्वस्वरूपे देवि! कही भी सत्- असत्रूप जो कुछ वस्तुएं हैं और उन सब की जो शक्ति हैं, वह तुम्ही हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया हैं, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता हैं? मुझको, भगवान् शकर को तथा भगवान् विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया हैं। अतः तम्हारी स्तति करने की शक्ति किस में हैं? देवि! तुम तो अपने इन उदार प्रभावों से ही दो। प्रशंसित हो। ये जो दोनो दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान् विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके, भीतर इन दोनों महान् असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर | 


* मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुखवाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी का भजन करता हूँ, जो अपने हाथो में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्य, धनुष,कुण्डिका,दण्ड,शक्ति, खड्ग, ढाल, शंख, घण्टा, मधुपात्र, शूल, पाश और चक्र धारण करती हैं।


* जगदम्बा के श्री अंगो की कान्ति उदयकाल के सहस्त्रों सूर्यो के समान हैं। वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही हैं। दोनो स्तनो पर रक्त चंदन का लेप लगा हैं। वे अपने करकमलो में जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। तीन नेत्रो से सुशोभित मुखारविन्द की बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बंधा है तथा वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। ऐसी देवी को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।


* देवी ने कहा :- ओ मूढ़! मैं जब तक मधु पीती हूँ, तब तक तू क्षण भर के लिये खूब गर्ज ले। मेरे हाथ से यही तेरी मृत्यु हो जाने पर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे।


* ऋषि कहते हैं :- यों कहकर देवी उछलीं और उस महादैत्य के ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होने शुल से उसके कण्ठ में आघात किया। उनके पैर से दबा होने पर भी महिषासुर अपने मुख से (दूसरे रूप में बाहर होने लगा) अभी आधे शरीर से ही वह बाहर निकलने पाया था कि देवी ने अपने प्रभाव से उसे रोक दिया। आधा निकला होने पर भी वह महादैत्य देवी से युद्ध करने लगा। तब देवी ने बहुत बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया। फिर तो हाहाकार करती हुई दैत्यों की सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये। देवताओ ने दिव्य महर्षियो के साथ दुर्गा देवी का स्तवन किया। गन्धर्वराज गाने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं।


* सिद्धि की इच्छा रखने वाले पुरूष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं, उन जया नाम वाली दुर्गा देवी का ध्यान करें। उनके श्री अंगो की आभा काले मेघ के समान श्याम है। वे अपने कटाक्षो से शत्रु समुह को भय प्रदान करती है। उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है। वे अपने हाथो में शंख,चक्र,कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वे सिंह के कंधे पर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनो लोको को परिपूर्ण कर रही है।


* ऋषि कहते हैं :- अत्यन्त पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर तथा उसकी देत्य-सेना के देवी के हाथ से मारे जाने पर इन्द्र आदि देवता प्रणाम के लिये गर्दन तथा कंधे झुकाकर उन भगवती दुर्गा का उत्तम वचनों द्वारा स्तवन करने लगे। उस समय उनके सुन्दर अंगों में अत्यन्त हर्ष के कारण रोमांच हो आया था


* देवता बोले :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा हैं, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीय उन जगदम्बा को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हम लोगो का कल्याण करें। जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान शेषनाग ब्रह्माजी तथा महादेव जी भी समर्थ नही हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करेंजो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रता रूप से, शुद्ध अन्तः करण वाले पुरूषों के हृदय में बुद्धि रूप से, सत्पुरूषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जारूप से निवास करती है, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये। देवि! आपके इस अचिन्त्य रूप का, असुरो का नाश करने वाले भारी पराक्रम का तथा समस्त देवताओं और दैत्यों के समक्ष युद्ध में प्रकट किये हुए आपके अद्भुत चरित्रों का हम किस प्रकार वर्णन करे। आप सम्पूर्ण जगत् की उत्पति में कारण हैं। आप में सत्वगुण, रजोगुण, और तमोगुण-ये तीनो गुण मौजूद हैं तो भी दोषों के साथ आपका संसर्ग नही जान पडता। भगवान विष्णु और महादेव जी आदि देवता भी आपको पार नही पाते। आप ही सब का आश्रय है। यह समस्त जगत् आपका अंशभूत हैंक्योकी आप सब की आदिभूत अव्याकृता परा प्रकृति हैं। देवि! सम्पूर्ण यज्ञो में जिसके उचारण से सब देवता तृप्ति लाभ करते हैं, वह स्वाहा आप ही हैं। इसके अतिरिक्त आप पित्तरों की भी तृप्ति का कारण हैं, अतएव सब लोग आप को स्वधा भी कहते हैं। देवी जो मोक्ष की प्राप्ति का साधन हैं, अचिन्त्य महाव्रतस्वरूपा हैं, समस्त दोषों से रहित, जितेन्द्रिय, तत्व को ही सार वस्तु मानने वाले तथा मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले मुनिजन जिसका अभ्यास करते हैं, वह भगवती पर विद्या आप ही हैं। आप शब्दस्वरूपा हैं, अत्यन्त र्निमल ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा उद्गीथ के मनोहर पदों के पाठ से युक्त सामवेद का भी आधार आप ही हैं। आप देवी, त्रयी(तीनों वेद) और भगवती (छह ऐश्वर्यों से युक्त) हैं। इस विश्व की उत्पत्ति एवं पालन के लिए आप ही वार्ता (खेती एवं आजीविका) के रूप में प्रकट हुई हैं। आप सम्पूर्ण जगत की घोर पीड़ा का नाश करने वाली हैं। देवी! जिससे समस्त शास्त्रों के सार का ज्ञान होता है, वह मेघा शक्ति आप ही हैं। दुगर्म भवसागर से पार उतारने वाली नौका रूप दुर्गा भी आप ही हैं। आपकी कहीं भी आसक्ति नही हैं। कैटभ के शत्रु भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में एकमात्र निवास करने वाली भगवती लक्ष्मी तथा भगवान चन्द्रशेखर द्वारा सम्मानित न चन्द्रशेखर द्वारा सम्मानित गौरी देवी भी आप ही हैं। आपका मुख मन्द मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय हैं तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने आप पर प्रहार कर दिया, यह बड़े आश्चर्य की बात हैं। देवी! वही मुख जब क्रोध से युक्त होने पर उदय काल के चन्द्रमा की भाँति लाल और तनी हुई भौंहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत नही निकल गयें, यह उस से भी बढ़कर आश्चर्य की बात हैं क्योकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता हैं? देवि आप प्रसन्न होपरमात्मास्वरूपा आप के प्रसन्न होने पर जगत में अभ्युदय होता हैं और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलो का सर्वनाश कर डालती हैं। यह बात अभी अनुभव में आयी हैं। क्योकि महिषासुर की विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी हैं। सदा अभ्युदय प्रदान करने वाली आप जिस पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्ही को धन और यश की प्राप्ति होती हैं उन्ही का धर्म कभी शिथिल नही होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। देवि! आप की ही कृपा से पुण्यात्मा पुरूष प्रतिदिन अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सदा सब प्रकार के धर्मानुकूल कर्म करता है और उसके प्रभाव से स्वर्गलोक में जाता हैं। इसलिए आप तीनो लोको में निश्चय ही मनोवांछित फल देने वाली हैं। देवी दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियो का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरूषो द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो। देवि! इन राक्षसों के मारने से संसार को सुख मिले तथा ये राक्षस चिरकाल तक नरक में रहने के लिए भले ही पाप करते रहे हो, इस समय संग्राम में मृत्यु को प्राप्त होकर स्वर्गलोक में जायेनिश्चय ही यही सोचकर आप शत्रुओं का वध करती हैं। आप शत्रुओं पर शस्त्रो का प्रहार क्यों करती हैं? समस्त शत्रुओं को दृष्टिपात मात्र से भस्म क्यो नही कर देती? इसमे एक रहस्य हैं। ये शत्रु भी हमारे शस्त्रों से पवित्र होकर उत्तम लोक को जाये - इस प्रकार उनके प्रति भी आपका विचार अत्यन्त उत्तम रहता हैं। खड्ग के तेजःपुञ्ज की भयंकर दीप्ति से तथा आपके त्रिशूल के अग्रभाग की तथा आपके त्रिशूल के अग्रभाग की घनीभूत प्रभा से चौधिंयाकर जो असुरों की आँखें फूट नही गया गयी, उसमें कारण यही था कि वे मनोहर रश्मियों से युक्त चन्द्रमा के समान आनन्द प्रदान करने वाले आपके इस सुन्दर मुख का दर्शन करते थे। देवि! आपका शील दुराचारियों के बुरे बतार्व को दूर करने वाला हैंसाथ ही यह रूप ऐसा हैं, जो कभी चिन्तन में भी नही आ सकता और जिसकी कभी दुसरो से तुलना भी नही हो सकती तथा आपका बल और पराक्रम तो उन दैत्यो का भी नाश करने वाला हैं, जो कभी देवताओं के पराक्रम को भी नष्ट कर चुके थे। इस प्रकार अपने शत्रुओ पर भी अपनी दया ही प्रकट की हैंवरदायिनी देवी! आपके इस पराक्रम की किस के साथ तुलना हो सकती हैं तथा शत्रुओं को भय देने वाला एवं अत्यन्त मनोहर ऐसा रूप भी आपके सिवा और कहां हैं? हृदय में कृपा और युद्ध में निष्ठुरता- ये दोनो बाते तीनो लोको के भीतर केवल आप में ही देखी गई हैं। देवी ! आपने शत्रुओं का नाश करके इस समस्त त्रिलोक की रक्षा की हैं। उन शत्रुओं को भी युद्धभूमि में मारकर स्वर्गलोक में पहुचाँया हैं तथा उन्मत्त दैत्यो से प्राप्त होने वाले हम लोगो के भय को भी दूर कर दिया हैंआपको हमारा नमस्कार हैं। देवि! आप शूल से भी हमारी रक्षा करेंअम्बिके ! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हम लोगों की रक्षा करें। चण्डिके! पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में आप हमारी रक्षा करें तथा ईश्वर! अपने त्रिशुल को घुमाकर आप उत्तर दिशा में भी हमारी रक्षा करेंतीनों लोको में आपके जो परम सुन्दर एवं अत्यन्त भयंकर रूप विचरते रहते है, उनके द्वारा भी आप हमारी तथा इस भूलोक की रक्षा करें। अम्बिके! आपके कर-पल्लवों में शोभा पाने वाले खड्ग, शूल और गदा आदि जो-जो अस्त्र हो, उन सब के द्वारा आप सब ओर से हम लोगो की रक्षा करे। 


* ऋषि कहते हैं :- इस प्रकार जब देवताओं ने देवी दुर्गा की स्तुति की और नन्दन-वन के दिव्य पुष्पों एवं गन्ध-चन्दन आदि के द्वारा उनका पूजन किया, फिर सबसे मिलकर जब भक्तिपूर्वक दिव्य धूपों की सुगन्ध निवेदन की, तब देवी ने प्रसन्न वदन होकर प्रणाम करते हुए सब देवताओं से कहा।


* देवी बोली :- देवताओं! तुम सब लोग मुझसे जिस वस्तु की अभिलाषा रखते हो, उसे माँगों।


* देवता बोले :- भगवती ने हमारी सब इच्छा पूर्ण कर दी, अब कुछ भी बाकी नही है। क्योकी हमारा यह शत्रु महिषासुर मारा गया। महेश्वरि! इतने पर भी यदि आप हमे और वर देना चाहती हैं तो हम जब-जब आप का स्मरण करे तब-तब आप दर्शन देकर हम लोगो के महान संकट दर कर दिया करें तथा प्रसन्न मुखी अम्बिके! जो मनुष्य इन स्त्रोतो द्वारा आपकी स्तुति करे उसे वित्त, समृद्धि और वैभव देने के साथ ही उसकी धन आदि सम्पति को भी बढ़ाने के लिये आप सदा हम पर प्रसन्न रहे।


* ऋषि कहते हैं :- राजन्! देवताओं ने जब अपने तथा जगत् के कल्याण के लिये भ्रदकाली देवी को इस प्रकार प्रसन्न किया, तब वे तथास्त कहकर वही अन्तध्यान हो गयी।* जो अपने करकमलों में घण्टा, शूल, हल, शंख, मुसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, शरद् ऋतु के शोभासम्पन्न चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर कान्ति हैं, जो तीनो लोको की आधारभता और शम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं तथा गौरी के शरीर से जिनका प्राकट्य हुआ है, उन महासरस्वती देवी का मैं निरन्तर भजन करता है |


* देवता बोलेः- देवी को नमस्कार हैं, महादेवी शिवा को सर्वदा नमस्कार है। प्रकृति एवं भ्रदा को प्रणाम है। हम लोग नियमपूर्वक जगदम्बा को नमस्कार करते हैं। रौद्रा को नमस्कार हैं। नित्या, गौरी एवं धात्री को बारंबार नमस्कार है। ज्योत्स्नामयी, चन्द्ररूपिणी एवं सुखस्वरूपा देवी को सतत् प्रणाम है। शरणागतों का कल्याण करने वाली वृद्धि एवं सिद्धिरूपा देवी को हम बारंबार नमस्कार करते है। नैर्ऋती (राक्षसो की लक्ष्मी), राजाओं की लक्ष्मी,शर्वाणी (शिव पत्नी) स्वरूपा आप जगदम्बा को बार-बार नमस्कार है। दुर्गा, दुर्गपारा (दुर्गम संकट से पार उतारने वाली), सारा (सबकी सारभूता), सर्वकारिणी, ख्याति, कृष्णा और धूमा देवी को सर्वदा नमस्कार है। अत्यन्त सौम्य तथा अत्यन्त रौदरूपा देवी को हम नमस्कार करते हैं, उन्हें हमारा बारंबार प्रणाम हैं। जगत् की आधारभूता कृति देवी * को बांरबार नमस्कार है। जो देवी सब प्राणियों में विष्णु | माया के नाम से कही जाती है, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है। जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती है, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंजो देवी सब प्राणियों में बुद्धि रूप से स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में निद्रा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में क्षुधा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में छाया रूप में स्थित हैंउनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में तृष्णा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में शान्ति(क्षमा) रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारबार नमस्कार है। जो देवी सब प्राणियों में जातिरूप रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में लज्जा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंजो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में कान्तिरूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंजो देवी सब प्राणियों में वृत्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में स्मृति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में दया रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंजो देवी सब प्राणियों में तुष्टि रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में माता रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी सब प्राणियों में भ्रान्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंजो जीवों के इन्द्रिय वर्ग की अधिष्ठात्री देवी एवं सब प्राणियों में सदा व्याप्त रहने वाली हैं, उन व्याप्ति देवी को बारंबार नमस्कार हैं। जो देवी चैतन्य रूप से इस जगत् को व्याप्त करके स्थित हैं, उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार हैंपूर्वकाल में अपने अभीष्ट की प्राप्ति होने से देवताओं ने जिनकी स्तुति की तथा देवराज इन्द्र ने बहुत दिनो तक जिनका सेवन किया, वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मंगल करे तथा सारी आपत्तियो का नाश कर डाले। उद्दण्ड दैत्योके सताये हुए हम सभी देवता जिन परमेश्वरी को इस समय नमस्कार करते हैं। तथा जो भक्ति से विनम्र पुरूषों द्वारा स्मरण किये जाने पर तत्काल ही सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश कर देती हैं, वे जगदम्बा हमारा संकट दूर करें।


 * मैं सर्वज्ञेश्वर भैरव के अङ्क में निवास करने वाली परमोत्कृष्ट पद्मावती देवी का चिन्तन करता हूँ। वे नागराज के आसन पर बैठी हैं, नागों के फणों में सुशोभित होने वाली मणियों की विशाल माला से उनकी देहलता उद्भासित हो रही हैं। सूर्य के समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। वे हाथों में माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तक पर अर्धचन्द्रका मुकुट सुशोभित हैं।


* मैं माताङ्गी देवी का ध्यान करता हूँ। वे रत्नमय वैष्णवी सिंहासन पर बैठकर पढ़ते हुए तोते का मधुर शब्द सुन देविरही हैं। उनके शरीर का वर्ण श्याम हैवे अपना एक पैर प्रसन्न कमल पर रखे हुए हैं और मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करती हैं तथा कहलार पुष्पों की माला धारण किये वीणा बजाती हैं। उनके अङ्गमे कसी हुई चोली शोभा पा रही हैं। वे लाल रंग की साड़ी पहने हाथ में शंखमय पात्र लिये हुए हैं। उनके वदन पर मधु का हल्का - हल्का प्रभाव जान पड़ता हैं और ललाट पर बिंदी शोभा दे रही हैं। देवी


* मैं अणिमा आदि सिद्धिमयी किरणों से आवृत भवानी का ध्यान करता हूँ। उनके शरीर का रगं लाल हैं, नेत्रों में करूणा लहरा रही हैं तथा हाथों में पाश, अंङ्कश, बाण और धनुष शोभा पाते हैं।


* मैं अर्धनारीश्वर के श्रीविग्रह की निरन्तर शरण लेता हूँ। उसका वर्ण बन्धूकपुष्प और सुवर्ण के समान रक्तपीतमिश्रित हैं। वह अपनी भुजाओं में सुन्दर अक्षमाला, पाश, अकुंश और वरद-मुद्रा धारण करती हैं। अर्धचन्द्र जिनका आभूषण हैं तथा वह तीन नेत्रों से सुशोभित हैं। * मैं मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाली शिवशक्ति स्वरूपा भगवती कामेश्वरी का हृदय में चिन्तन करता हूँ।


वे तपाये हुए सुवर्ण के समान सुन्दर हैं। सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि - ये तीन उनके नेत्र हैं तथा वे अपने मनोहर हाथों में धनुष-बाण, अकुंश, पाश, और शूल धारण किये हुए हैं।


* मैं भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता हूँ। उनके श्री अंगो की आभा प्रभात काल के सूर्य के समान हैं और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट हैंवे उभरे हुए स्तनों और तीन नेत्रों से युक्त हैंउनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती हैं और हाथों में वरद, की छटा छायी रहती हैं और अकुशं, पाशं एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं।


अकुशं, पाशं एवं अभय-मुद्रा शोभा पाते हैं। * ऋषि कहते हैं :- देवी के द्वारा वहाँ महादैत्यपति शुम्भ के मारे जाने पर इन्द्र आदि देवता अग्नि को आगे करके, उन कात्यायनी देवी की स्तुति करने लगेउस समय अभीष्ट की प्राप्ति होने से उनके मुख कमल दमक उठे थे और उनके प्रकाश से दिशाएँ भी जगमगा उठी थीं। देवता बोले - शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली देवि! हम पर प्रसन्न होओसम्पूर्ण जगत् की देवी! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्ही चराचर जगत की अधीश्वरी हो। तुम इस जगत का एकमात्र आधार हो। क्योकि पृथ्वी रूप में तुम्हारी ही स्थिति हैं। देवि! तुम्हारा पराक्रम अलघंनीय हैं। तुम्ही जलरूप में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत को तृप्त करती हो। तुम अनन्त बलसम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो। इस विश्व की कारणभूता परा माया होदेवि! तुमने इस समस्त जगत को मोहित कर रखा हैं। तुम्ही प्रसन्न होने पर इस पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती होदेवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे हीं भिन्न भिन्न स्वरूप हैंजगत में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैंजगदम्बा! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा हैं। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती हैं? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थों से परे एवं परा वाणी होजब तुम सर्वस्वरूपा देवी स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाली हो, तब इसी रूप में तुम्हारी स्तुति हो गयी। तुम्हारी स्तुति के लिए इस से अच्छी उक्तियाँ और क्या हो सकती हैं? बुद्धि रूप से सब लोगों के हृदय में विराजमान रहने वाली तथा स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली नारायणी देवि तुम्हे! नमस्कार हैं। कला, काष्ठा आदि के रूप से क्रमशः परिणाम (अवस्था परिवर्तन) की ओर ले जाने वाली तथा विश्व का उपसंहार करने में समर्थ नारायणी! तुम्हे नमस्कार हैंनारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा होसब पुरूषार्थ को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रो वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार हैं। तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्तिभूता,